उज्जैन के पास कोलुखेड़ी गाँव के एक अनुभवी किसान इक़बाल पटेल, जिनके पास 35 से अधिक वर्षों का कृषि अनुभव है, आलू की खेती को एक जटिल और विरोधाभासी नज़रिए से देखते हैं। लगभग 45 एकड़ ज़मीन का प्रबंधन करने वाले और इसमें से 25 से 30 एकड़ पर आलू लगाने वाले इक़बाल पटेल के लिए, यह फसल सबसे अधिक लाभ देने की क्षमता रखती है, लेकिन इसकी उच्च लागत और बाज़ार की अस्थिरता अक्सर मुनाफ़े को कम कर देती है।
क्षमता और विरोधाभास: आलू क्यों, और क्यों नहीं?
इक़बाल पटेल का आलू की खेती पर मूल विचार एकदम स्पष्ट है: “अगर लागत कम हो जाए और क़ीमत अच्छी मिल जाए, तो आलू से बेहतर कोई फसल नहीं।” वह मानते हैं कि आलू में, गेहूँ की तरह आग लगने या आँधी-तूफ़ान में आड़ा पड़ने जैसे प्राकृतिक नुक़सान का जोखिम कम होता है।
लेकिन, यह आशावाद मौजूदा वित्तीय वास्तविकताओं से घिरा हुआ है। वह कहते हैं कि आलू की खेती में मुनाफ़ा अभी कम है क्योंकि उत्पादन की लागत बहुत ज़्यादा है।
| माप दंड | आलू (प्रति एकड़) | गेहूँ (प्रति एकड़) |
| कुल लागत | ||
| औसत उपज | 80 – 90 क्विंटल | 28 – 36 क्विंटल |
| औसत आय (₹13/किलो पर) | ₹70,000 – ₹90,000 | |
| अपेक्षित शुद्ध मुनाफ़ा |
इक़बाल पटेल के अनुसार, आलू में ₹36,000 से ₹40,000 प्रति एकड़ का मुनाफ़ा, इसके भारी खर्च को देखते हुए “कम” है। इसकी तुलना में, गेहूँ में निवेश और रखरखाव कम होने के बावजूद, उन्होंने एक अच्छे सीज़न में ₹52,000 से ₹72,400 प्रति एकड़ का शुद्ध मुनाफ़ा कमाया। वह यह भी बताते हैं कि पिछले पाँच सालों का औसत आधार मूल्य (बेस रेट) केवल ₹11 से ₹13 प्रति किलोग्राम के आसपास रहा है, जो कि इतनी भारी लागत के ख़िलाफ़ उच्च रिटर्न की गारंटी के लिए पर्याप्त नहीं है।
आलू और गेहूँ की खेती के नवीनतम (2025-2026) तुलनात्मक अनुमान
इक़बाल की गणना के अनुसार, आलू की खेती का मुख्य भार बीज की लागत पर आता है, जबकि गेहूँ में लागत काफ़ी कम है। आलू और गेहूँ के लिए 2025-2026 के लिए प्रति एकड़ अनुमानित खर्च और उत्पादन की तुलना नीचे दी गई है:
आलू में ₹77,000 की उच्च लागत और गेहूँ में मात्र ₹17,600 की कम लागत, इक़बाल के इस तर्क को पुष्ट करती है कि आलू की खेती में मुनाफ़े की गारंटी के लिए बाज़ार मूल्य में भारी उछाल आना ज़रूरी है।
कोल्ड स्टोरेज की लागत का बोझ
इक़बाल पटेल ने अपने कुछ आलू की वैरायटी जैसे LR, चिपसोना-1, आदि को कोल्ड स्टोरेज (शीत भंडार गृह) में रखा था। बाद में आलू को कोल्ड स्टोरेज से बेचते समय मुनाफ़ा कमाना एक अलग चुनौती बन गया।
हालाँकि आलू ₹12 से ₹14 प्रति किलोग्राम की दर से बिके, लेकिन उन्हें कटाई के बाद के ख़र्चों में ₹4 प्रति किलोग्राम की लागत और जोड़नी पड़ी।
इस ₹4 प्रति किलोग्राम की लागत में शामिल हैं:
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कोल्ड स्टोरेज का किराया (लगभग ₹2.50)
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परिवहन और हम्माली।
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सूखत सड़न (ख़राबी के कारण होने वाला नुक़सान)।
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खेती के लिए लिए गए पैसे पर लगा ब्याज।
इन कटौतियों के बाद, उन्हें मिलने वाला प्रभावी मूल्य काफी कम हो जाता है, जो आलू व्यवसाय के कम मुनाफ़े वाले पहलू को और उजागर करता है।
लागत कम करने की ज़रूरत
इक़बाल पटेलके लिए, आलू की खेती एक जोखिम भरा, उच्च-निवेश वाला व्यवसाय है जिसके लिए बाज़ार के सही समय और अनुकूल मौसम की आवश्यकता होती है। तीन दशकों से अधिक समय तक इस फसल को समर्पित रहने के बावजूद, उनका अंतिम मत यह है कि उद्योग का अर्थशास्त्र वर्तमान में किसान के विपरीत है। उच्च इनपुट लागत, और पाँच साल का औसत मूल्य जो बहुत कम है, मुनाफ़े को एक असंतोषजनक स्तर तक कम कर देता है।
हालाँकि वह अपनी ज़मीन का अधिकांश हिस्सा आलू के लिए समर्पित रखना जारी रखते हैं, लेकिन गेहूं जैसे उच्च-मुनाफ़े वाले, कम जोखिम वाले विकल्प की ओर उनका झुकाव एक व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है: जब तक उत्पादन की लागत कम नहीं होती है या आधार मूल्य एक उच्च, अधिक लाभदायक स्तर पर स्थिर नहीं होता है, तब तक आलू की वास्तविक क्षमता उनके लिए और संभवतः कई अन्य किसानों के लिए पूरी तरह से साकार नहीं हो सकती है।